ما نصف الجنان
| حتى نكون لها واردين ؟
| - حديقة الورد
| ميدان الطيور
| جسر على "سيسبول"
| يحجّ له السوّاح
| منارتان هما لغز
| ليس ندركه
| تهتزّان معا
| فيعتري الواقفين وجوم
| دهشة ..،
| - ليس الذي قلت
| به السرّ
| لابالعابرين
| الى جبل
| يصطفّ به الحلم
| أشجار تضيء العصافير
| العشيقة،
| اذ تتوهم الجذع
| به الشمس
| الهاربون لكورة
| النحل..،
| فيء القبّرات
| تصافح الكأس.
| الظلال،
| لها رفّة
| يأتي الحمام بها
| تتبّسم الشمس
| أنا المرتدي غربة
| تخضلّ كفّي
| أرى بين الأصابع
| ثوب الريح
| خيطانه السبع تلتفّ
| ألوانها فرح ،
| ألمّ الأغاني
| من درب غانية
| لها السوق
| ترتعش القراءات
| على شفتي
| " اصفهان" الخمر
| تندهش المنائر
| الصبايا..،
| تلبس الشالات في غنج
| والتي في كفّها الصبح
| ذرّت دهشتي،
| فوق ماء المدينة
| ابتلّت حدائقها
| نخلة فيّ
| لمّت سعفها
| الريح لم تعبث بها
| أيقظتني
| أسكنت غربتي ظلّها
| افترشت المفازات
| فرشاتي
| بها السرّ ينكشف
| المدينة..،
| أتلو صحيفتها
| في وجه سيدة
| كفّت المرآة عنه |
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